Sunday 29 December 2019

Virupaksha Temple Hampi in hindi

Virupaksha Temple Hampi 

Virupaksha temple in hindi

   विरुपाक्ष मंदिर भारत के प्रसिद्ध ऐतिहासिक मंदिरों में से एक है। यह मंदिर बंगलौर से 350 किलोमीटर की दूरी पर भारत के कर्नाटक राज्य, हम्पी में स्थित है। विरुपाक्ष मंदिर हम्पी के ऐतिहासिक स्मारकों के समूह का एक मुख्य हिस्सा है, विशेषकर पट्टडकल में स्थित स्मारकों के समूह में है। इस मंदिर का नाम यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल में शामिल है। यह मंदिर भगवान विरुपाक्ष और उनकी पत्नी देवी पंपा को समर्पित है। विरुपाक्ष, भगवान शिव का ही एक रूप है। विरुपाक्ष मंदिर के पास छोटे-छोटे और मंदिर जोकि अन्य देवी देवताओं को समर्पित है।

Virupaksha Temple / विरुपाक्ष मंदिर
Virupaksha Temple / विरुपाक्ष मंदिर

विरुपाक्ष मंदिर का इतिहास। Virupaksha temple history


   विरुपाक्ष मंदिर का संबंध इतिहास प्रसिद्ध विजयनगर साम्राज्य से है। यह मंदिर विजयनगर साम्राज्य की राजधानी हम्पी, तुंगभद्रा नदी के किनारे पर स्थित है। यह मंदिर 7वीं सदी का है और इस पर की गई नक्काशियां 9वीं या 11वीं सदी की हैं। प्रारंभ में, विरुपाक्ष मंदिर में केवल कुछ ही मूर्तियां प्रतिष्ठापित की गई थी, लेकिन समय के साथ-साथ यह मंदिर एक विशाल भवन में विकसित हो गया। 1509 ई. में गोपुडा तथा रंग मंड़पम को कृष्णदेवराय द्वारा 1510 ई. में बनाया गया था। विरुपाक्ष मंदिर, हम्पी में तीर्थ यात्रा का मुख्य केंद्र है, और सदियों से सबसे पवित्र अभयारण्य माना जाता है। आसपास के खंडहरों में यह मंदिर अब भी बरकरार है और अभी भी मंदिर में भगवान शिव की पूजा कि जाती है।

विरुपाक्ष मंदिर की वास्तुकला

   विरुपाक्ष मंदिर दक्षिण भारतीय द्रविड़ स्थापत्य शैली को दर्शाता है और ईंट तथा चूने से बनाया गया है। मंदिर के पूर्व में पत्थर का एक विशाल नंदी है, जबकि दक्षिण की ओर गणेश की विशाल प्रतिमा है। यहाँ अर्ध सिंह और अर्ध मनुष्य की देह धारण किए नृसिंह की 6.7 मीटर ऊँची मूर्ति है। विरुपाक्ष मंदिर के प्रवेश द्वार का गोपुरम हेमकुटा पहाड़ियों व आसपास की अन्य पहाड़ियों पर रखी विशाल चट्टानों से घिरा है और चट्टानों का संतुलन हैरान कर देने वाला है।



Virupaksha Temple / विरुपाक्ष मंदिर
Virupaksha Temple / विरुपाक्ष मंदिर
   
    विरुपाक्ष मंदिर पंपापति मंदिर के रुप में भी जाना जाता है। इस पवित्र स्थान में एक मुख मंड़प (रंगा मंड़पम) है, जिसमें तीन कक्ष और स्तम्भों के साथ एक विशाल कक्ष है। विरुपाक्ष मंदिर को देखने पर, पर्यटकों को पता चलेगा कि यह मंदिर 7वीं सदी का है और इस पर की गई नक्काशियां 9वीं या 11वीं सदी की हैं।
   प्रारंभ में, इस मंदिर में केवल कुछ ही मूर्तियां प्रतिष्ठापित की गई थी, लेकिन समय के साथ-साथ यह मंदिर एक विशाल भवन में विकसित हो गया। रंगा मंड़पम को कृष्णदेवराय द्वारा 1510 ई. में बनाया गया था जो विजयनगर की वास्तुकला शैली को दर्शाता है। खंभों को, मंदिर के रसोईघर को, दीपकों को, बुर्जों तथा अन्य मंदिरों को बाद में बनाया गया है। जानवरों के नक्काशीदार विचित्र चित्र और हिंदू मिथकों का चित्रण करते चित्र वीरूपाक्ष मंदिर के मुख्य आकर्षण हैं। 1509 ई. में अपने अभिषेक के समय कृष्णदेव राय ने यहाँ नौ स्तरौं और 50 मीटर ऊंचा गोपुड़ा का निर्माण करवाया था। 
    विरुपाक्ष मंदिर में भूमिगत शिव मन्दिर भी है। मन्दिर का बड़ा हिस्सा पानी के अन्दर समाहित है, इसलिए वहाँ कोई नहीं जा सकता। बाहर के हिस्से के मुक़ाबले मन्दिर के इस हिस्से का तापमान बहुत कम रहता है।

विरुपाक्ष मंदिर से जुड़े पौराणिक कथा 

    किंवदंती है कि भगवान विष्णु ने इस जगह को अपने रहने के लिए कुछ अधिक ही बड़ा समझा और अपने घर वापस लौट गए।
    एक और पौराणिक कथा के अनुसार विरुपाक्ष मंदिर भगवान शिव और रावण के प्रसंग से जुड़ा है। त्रेतायुग में रावण ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिये कठोर तपस्या की। भगवान शिव रावण की तपस्या से बेहद प्रसन्न हुए और वर मांगने को कहा।
   रावण ने शिव को ही लंका चलने का न्यौता दिया, लेकिन भगवान शिव ने मना करते हुए रावण को एक शिवलिंग दिया। भगवान शंकर ने रावण को शिवलिंग देते हुए कहा कि इसे कहीं भी धरती पर मत रखना। यदि इसे कहीं रख दिया तो यह शिवलिंग वहीं स्थापित हो जाएगा। फिर इसे हटाया नहीं जा सकेगा।
   रावण शिवलिंग लेकर लंका की तरफ चल दिया। रास्ते में किसी वजह से रावण को रुकना पड़ गया। उसने एक बुजुर्ग को शिवलिंग पकड़ा कर कहा कि इसे जमीन पर मत रखना। लेकिन जब तक रावण आता वह बुजुर्ग उसे जमीन पर रख चुका था। रावण ने काफी प्रयास किया कि वह शिवलिंग को अपने साथ ले जा सके, लेकिन वह उसे हिला तक नहीं सका। आखिरकार रावण शिवलिंग छोड़कर लंका चला गया। तब से वह शिवलिंग यहीं है।


Virupaksha Temple  Hampi,  Hampi kaha hai?

  • स्थल:  हंपी, कर्नाटक
  • मंदिर खुलने और बंद होने का समय:  09.00 am से 01:00 pm और 05:00 pm से 09:00 pm तक
  • निकटतम रेलवे स्टेशन:  होस्पेट, विरुपाक्ष मंदिर से 13 किमी की दूरी पर है।
  • निकटतम हवाई अड्डा:  विरुपाक्ष मंदिर से 271 किमी की दूरी पर बेल्लारी एअरपोर्ट है।
  • यात्रा के लिए उत्तम समय:  श्रावण मास से फाल्गून मास का समय दर्शन के लिए उत्तम समय है।
  • मुख्य त्यौहार :  महाशिवरात्रि, वार्षिक रथ यात्रा, फलपुजा त्यौहार। 
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English Version

Virupaksha Temple Hampi


    Virupaksha Temple Hampi is one of the famous historical temples of India.  The temple is located in Hampi, Karnataka state of India, 350 kilometers from Bangalore.  Virupaksha Temple Hampi  is a major part of the group of historical monuments of Hampi, especially in the group of monuments located at Pattadakal.  The name of this temple is included in the UNESCO World Heritage Site.  The temple is dedicated to Lord Virupaksha and his consort Devi Pampa.  Virupaksha is a form of Lord Shiva.  Near the Virupaksha Temple Hampi there are many small temples which are dedicated  to other deities.

Virupaksha Temple / विरुपाक्ष मंदिर
Virupaksha Temple / विरुपाक्ष मंदिर

Virupaksha Temple history


   Virupaksha Temple history is related to history famous Vijayanagara empire.  The temple is located on the banks of the Tungabhadra River, Hampi, the capital of the Vijayanagara Empire.  The temple is of 7th century and the carvings done on it are of 9th or 11th century.  Initially, only a few statues were installed in the Virupaksha Temple Hampi, but over time the temple developed into a huge building.  Gopuda and Rang Mandapam were built by Krishnadevaraya in 1510 AD in 1509 AD.  Virupaksha Temple Hampi is the main center of pilgrimage in Hampi, and is considered the holiest sanctuary for centuries.  The temple is still intact in the surrounding ruins and still Lord Shiva is worshiped in the temple.


Architecture of Virupaksha Temple Hampi

    Virupaksha Temple Hampi reflects the South Indian Dravidian architectural style and is built of brick and lime.  To the east of the temple is a huge stone Nandi, while on the south side there is a huge statue of Ganesh.  There is a 6.7 meter high statue of Narsingh holding the body of half lion and half man.  The gopuram of the entrance of Virupaksha Temple Hampi is surrounded by huge rocks placed on Hemkuta hills and other surrounding hills and the balance of rocks is astonishing.

Virupaksha Temple / विरुपाक्ष मंदिर
Virupaksha Temple / विरुपाक्ष मंदिर

  Virupaksha Temple Hampi is also known as Pampapati Temple.  This sacred place has a Mukha Mandapa (Ranga Mandapam), which has a huge chamber with three chambers and pillars.  On seeing the Virupaksha temple, tourists will find that the temple is of 7th century and the carvings on it are of 9th or 11th century.

    Initially, only a few statues were enshrined in this temple, but over time the temple developed into a huge building.  Ranga Mandapam was built by Krishnadevaraya in 1510 AD which reflects the architectural style of Vijayanagar.  The pillars, the kitchen of the temple, the lamps, the bastions and other temples have been built later.  The quaint images of animals carved and depicting Hindu myths are the main attractions of the Virupaksha Temple Hampi.  During his consecration in 1509 AD, Krishnadeva Raya built Gopuda here nine levels and 50 meters high.

     There is also an underground Shiva temple in Virupaksha Temple Hampi.  A large part of the temple is contained in water, so no one can go there.  The temperature of this part of the temple is very low as compared to the outside.

Beliefs related to Virupaksha Temple Hampi

   One of the beliefs say that Lord Vishnu considered this place too big for his stay and returned to his home.

     According to another belief, Virupaksha Temple Hampi is associated with the context of Lord Shiva and Ravana.  In Tretayuga, Ravana did hard penance to please Lord Shiva.  Lord Shiva was very pleased with the austerities of Ravana and asked to ask for the bride.

    Ravana invited Shiva to walk to Lanka, but Lord Shiva refused and gave Ravana a Shivalinga.  Lord Shiva gave Shivling to Ravana and said that do not place it anywhere on earth.  If you put it somewhere, then this Shivling will be installed there itself.  Then it will not be removed.

    Ravana took Shivling and walked towards Lanka.  On the way, Ravana had to stay for some reason.  He caught an elder Shivling and told him not to place it on the ground.  But by the time Ravana arrived, the elderly had put him on the ground.  Ravana tried hard to take Shivlinga with him, but he could not even shake it.  Eventually Ravana left Shivling and went to Lanka.  Since then, that Shivling is here. 

Hampi kaha hai?
Virupaksha temple Hampi

  • VENUE: Hampi, Karnataka
  • Temple opening and closing hours: 09.00 am to 01:00 pm and 05:00 pm to 09:00 pm
  • Nearest railway station: Hospet, at a distance of 13 km from Virupaksha Temple Hampi
  • Nearest airport: Bellary Airport is 271 km from Virupaksha Temple Hampi.
  • Best time to visit: The time from Shravan month to Falgun month is the best time to visit.
  • Main festivals: Mahashivratri, Annual Rath Yatra, Falapuja festival.


विरुपाक्ष मंदिर की छायाचित्रे / Images of Virupaksha Temple Hampi


Virupaksha Temple / विरुपाक्ष मंदिर
Virupaksha Temple / विरुपाक्ष मंदिर


Virupaksha Temple / विरुपाक्ष मंदिर
Virupaksha Temple / विरुपाक्ष मंदिर

Virupaksha Temple / विरुपाक्ष मंदिर
Virupaksha Temple / विरुपाक्ष मंदिर

Virupaksha temple Hampi

Wednesday 25 December 2019

मार्तण्ड सूर्य मंदिर / Martand Sun Temple


मार्तण्ड सूर्य मंदिर / Martand Sun Temple


  क्या आप जानते है भारत का खूबसूरत पर्यटन स्थल कश्मीर सिर्फ अपनी खूबसूरती के लिए ही नहीं बल्कि कुछ बेहद खास मन्दिरों के लिए भी जाना जाता है, जिनमे से एक है मार्तंड सूर्य मंदिर। 7वीं से 8वीं शताब्दी में बना यह मंदिर भगवान सूर्य देव को समर्पित एक हिंदु मंदिर है। ‘मार्तंड’ यह नाम सूर्य देव का ही नाम है।

Martand Sun Temple / मार्तंड सूर्य मंदिर
Martand Sun Temple / मार्तंड सूर्य मंदिर

  मार्तंड सूर्य मंदिर विश्व के सुंदर मंदिरों की श्रेणी में भी अपना स्थान बनाए हुए है। बर्फ से ढके हुए पहाड़ों में स्थित यह मंदिर इस स्थान का करिश्मा ही कहा जाएगा। इस मंदिर से कश्मीर घाटी का मनोरम दृश्य आसानी से दिखाई देता है। जम्मू और कश्मीर राज्य के अनंतनाग नगर में स्थित एक प्रसिद्ध मंदिर है। मंदिर की उत्तरी दिशा से ख़ूबसूरत पर्वतों का नज़ारा भी देखा जा सकता हैं। आप मंदिर घूमते हुए एक सरोवर को भी देख सकते हैं, जिसमे आज भी रंग बिरंगी मछलियां तैरती हुई नजर आती हैं।
  वर्तमान में मार्तंड सूर्य मंदिर खंडहर में तब्दील हो गया है।

मार्तंड सूर्य मंदिर का इतिहास / History of Martand Sun Temple


  चारों ओर हिमाच्छादित पहाड़ों से घिरे इस मंदिर के निर्माण में वर्गाकार चूना-पत्थरों का इस्तेमाल किया गया था। मार्तंड सूर्य मंदिर का निर्माण कर्कोटक वंश से संबंधित राजा ललितादित्य मुक्तापीड द्वारा जम्मू कश्मीर के छोटे से शहर अनंतनाग के पास एक पठार के ऊपर करवाया था। इसकी गणना ललितादित्य के प्रमुख कार्यों में की जाती है।

मार्तंड सूर्य मंदिर की वास्तुकला 


  मार्तंड सूर्य मंदिर दक्षिण कश्मीर भाग में स्थित छोटे से शहर अनंतनाग से 60 किमी की दूरी पर स्थित एक पठार के ऊपर स्थित है। इसमें 84 स्तंभ हैं जो नियमित अंतराल पर रखे गए हैं। मार्तण्ड सूर्य मंदिर का आंगन 220 फुट x 142 फुट है। यह मंदिर 60 फुट लम्बा और 38 फुट चौड़ा था। इसके चतुर्दिक लगभग 80 प्रकोष्ठों के अवशेष वर्तमान में हैं। इस मंदिर के पूर्वी किनारे पर मुख्य प्रवेश द्वार का मंडप है। द्वारमंडप तथा मंदिर के स्तम्भों की वास्तु-शैली रोम की डोरिक शैली से कुछ अंशों में मिलती-जुलती है।

Martand Sun Temple / मार्तंड सूर्य मंदिर
Martand Sun Temple / मार्तंड सूर्य मंदिर

  मार्तंड सूर्य मंदिर अपनी खूबसूरत वास्तुकला के चलते पूरे देश में प्रसिद्ध है, यह मंदिर अपनी हिंदू राजाओं की स्थापत्य कला का बेहतरीन नमूना है। इस मंदिर को बनाने के लिए चूने के पत्थर की चौकोर ईंटों का उपयोग किया गया है जो उस समय के कलाकारों की कुशलता को दर्शाता है।

विदेशी आक्रमण


 करीब छह सौ वर्ष पूर्व 15 वीं शताब्दी में मुस्लिम आक्रांता सिकंदर बुतशिकन ने आक्रमण कर मंदिर को लगभग पूरी तरह से नष्ट कर दिया।

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English Version

मार्तण्ड सूर्य मंदिर / Martand Sun Temple


  Do you know that the beautiful tourist destination of India, Kashmir is known not only for its beauty but also for some very special temples, one of which is Martand Sun Temple.  Built in the 7th to 8th century, this temple is a Hindu temple dedicated to Lord Surya Dev.  'Martand' is the name of the sun god.

Martand Sun Temple / मार्तंड सूर्य मंदिर
Martand Sun Temple / मार्तंड सूर्य मंदिर

   Martand Sun Temple also holds its place in the category of beautiful temples of the world.  This temple situated in the snow-covered mountains will be called the charisma of this place.  The panoramic view of the Kashmir valley is easily visible from this temple.  There is a famous temple located in Anantnag Nagar in the state of Jammu and Kashmir.  A view of beautiful mountains can also be seen from the northern direction of the temple.  You can also see a lake, walking in the temple, in which colorful fish are still seen swimming.

   Presently Martand Sun Temple has been converted into ruins.

इतिहास / History of Martand Sun Temple


    Square limestone was used in the construction of this temple surrounded by snow-capped mountains.  Martand Sun Temple was built by King Lalitaditya Muktapeed belonging to the Karkotak dynasty atop a plateau near the small town of Anantnag in Jammu and Kashmir.  It is counted among the major works of Lalitaditya.

Architecture of Martand Sun Temple


   Martand Sun Temple is situated atop a plateau situated 60 km from the small town of Anantnag located in the south Kashmir part.  It has 84 columns which are placed at regular intervals.  The courtyard of the Martand Sun Temple is 220 feet x 142 feet.  The temple was 60 feet long and 38 feet wide.  There are presently the remains of about 80 cells around it.  On the eastern side of this temple is the mandapa of the main entrance.  The architectural style of the Dvamandap and the pillars of the temple is somewhat similar to the Doric style of Rome.

Martand Sun Temple / मार्तंड सूर्य मंदिर
Martand Sun Temple / मार्तंड सूर्य मंदिर

    Martand Sun Temple is famous all over the country due to its beautiful architecture, this temple is the finest specimen of the architecture of its Hindu kings.  Square lime stone bricks have been used to build this temple which shows the skill of the artists of that time.

Forien Invasion


   Nearly six hundred years ago in the 15th century, the Muslim invader Alexander Butashikan attacked and almost completely destroyed the temple.

छाया चित्रे / Images of the Martand Sun Temple


Martand Sun Temple / मार्तंड सूर्य मंदिर
Martand Sun Temple / मार्तंड सूर्य मंदिर

Martand Sun Temple / मार्तंड सूर्य मंदिर
Martand Sun Temple / मार्तंड सूर्य मंदिर

Martand Sun Temple
Martand Sun Temple




Monday 23 December 2019

कोणार्क सूर्य मंदिर / Konark Sun Temple

           

कोणार्क सूर्य मंदिर / Konark Sun Temple


           कोणार्क सूर्य मन्दिर भारत में उड़ीसा राज्य में जगन्नाथ पुरी से ३५ किमी उत्तर-पूर्व में कोणार्क  नामक शहर में स्थित है। यह भारतवर्ष के चुनिन्दा सूर्य मंदिरों में से एक है। सन् १९८४ में यूनेस्को ने इसे विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता दी है।

Konark Sun Temple
Konark Sun Temple

 पौराणिक महत्त्व


  यह मन्दिर सूर्य देव को समर्पित था, जिन्हें स्थानीय लोग 'बिरंचि-नारायण' कहते थे। इसी कारण इस क्षेत्र को अर्क-क्षेत्र (अर्क=सूर्य) या पद्म-क्षेत्र कहा जाता था। पुराणों के अनुसार श्रीकृष्ण के पुत्र साम्ब को उनके श्राप से कोढ़ रोग हो गया था। साम्ब ने मित्रवन में चंद्रभागा नदी के सागर संगम पर कोणार्क में, बारह वर्षों तक तपस्या की और सूर्य देव को प्रसन्न किया था। सूर्यदेव, जो सभी रोगों के नाशक थे, ने इसके रोग का भी निवारण कर दिया था। तदनुसार साम्ब ने सूर्य भगवान का एक मन्दिर निर्माण का निश्चय किया। अपने रोग-नाश के उपरांत, चंद्रभागा नदी में स्नान करते हुए, उसे सूर्यदेव की एक मूर्ति मिली। यह मूर्ति सूर्यदेव के शरीर के ही भाग से, देवशिल्पी श्री विश्वकर्मा ने बनायी थी। साम्ब ने अपने बनवाये मित्रवन में एक मन्दिर में, इस मूर्ति को स्थापित किया, तब से यह स्थान पवित्र माना जाने लगा।

 स्थापत्य एवं इतिहास


  कोणार्क शब्द, 'कोण' और 'अर्क' शब्दों के मेल से बना है। अर्क का अर्थ होता है सूर्य, जबकि कोण से अभिप्राय कोने या किनारे से रहा होगा। प्रस्तुत कोणार्क सूर्य-मन्दिर का निर्माण लाल रंग के बलुआ पत्थरों तथा काले ग्रेनाइट के पत्थरों से हुआ है। इसे १२३६-१२६४ ईसा पूर्व गंग वंश के तत्कालीन सामंत राजा नृसिंहदेव द्वारा बनवाया गया था। यह मंदिर, भारत के सबसे प्रसिद्ध स्थलों में से एक है। इसे युनेस्को द्वारा सन् १९८४ में ‘विश्व धरोहर स्थल’ घोषित किया गया है। कलिंग शैली में निर्मित इस मन्दिर में सूर्य देव (अर्क) को रथ के रूप में विराजमान किया गया है तथा पत्थरों को उत्कृष्ट नक्काशी के साथ उकेरा गया है। सम्पूर्ण मन्दिर स्थल को बारह जोड़ी चक्रों के साथ सात घोड़ों से खींचते हुये निर्मित किया गया है, जिसमें सूर्य देव को विराजमान दिखाया गया है। परन्तु वर्तमान में सातों में से एक ही घोड़ा बचा हुआ है। मन्दिर के आधार को सुन्दरता प्रदान करते ये बारह चक्र साल के बारह महीनों को परिभाषित करते हैं तथा प्रत्येक चक्र आठ अरों से मिल कर बना है, जो अर दिन के आठ पहरों को दर्शाते हैं। यहाँ पर स्थानीय लोग प्रस्तुत सूर्य-भगवान को बिरंचि-नारायण कहते थे।
मुख्य मन्दिर तीन मंडपों में बना है। इनमें से दो मण्डप ढह चुके हैं। तीसरे मण्डप में जहाँ मूर्ति थी, अंग्रेज़ों ने स्वतंत्रता से पूर्व ही रेत व पत्थर भरवा कर सभी द्वारों को स्थायी रूप से बंद करवा दिया था ताकि वह मन्दिर और क्षतिग्रस्त ना हो पाए। इस मन्दिर में सूर्य भगवान की तीन प्रतिमाएं हैं:
 •बाल्यावस्था-उदित सूर्य- ८ फीट
 •युवावस्था-मध्याह्न सूर्य- ९.५ फीट
 •प्रौढ़ावस्था-अपराह्न सूर्य-३.५ फीट
इसके प्रवेश पर दो सिंह हाथियों पर आक्रामक होते हुए रक्षा में तत्पर दिखाये गए हैं। दोनों हाथी, एक-एक मानव के ऊपर स्थापित हैं। ये प्रतिमाएं एक ही पत्थर की बनीं हैं। ये २८ टन की ८.४फीट लंबी ४.९ फीट चौड़ी तथा ९.२ फीट ऊंची हैं। मंदिर के दक्षिणी भाग में दो सुसज्जित घोड़े बने हैं, जिन्हें उड़ीसा सरकार ने अपने राजचिह्न के रूप में अंगीकार कर लिया है। ये १० फीट लंबे व ७ फीट चौड़े हैं। मंदिर सूर्य देव की भव्य यात्रा को दिखाता है। इसके के प्रवेश द्वार पर ही नट मंदिर है। ये वह स्थान है, जहां मंदिर की नर्तकियां, सूर्यदेव को अर्पण करने के लिये नृत्य किया करतीं थीं। पूरे मंदिर में जहां तहां फूल-बेल और ज्यामितीय नमूनों की नक्काशी की गई है। इनके साथ ही मानव, देव, गंधर्व, किन्नर आदि की आकृतियां भी एन्द्रिक मुद्राओं में दर्शित हैं। इनकी मुद्राएं कामुक हैं और कामसूत्र से लीं गईं हैं। मंदिर अब अंशिक रूप से खंडहर में परिवर्तित हो चुका है। यहां की शिल्प कलाकृतियों का एक संग्रह, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के सूर्य मंदिर संग्रहालय में सुरक्षित है। महान कवि व नाटककार रवीन्द्र नाथ टैगोर ने इस मन्दिर के बारे में लिखा है:- कोणार्क जहां पत्थरों की भाषा मनुष्य की भाषा से श्रेष्ठतर है।
  तेरहवीं सदी का मुख्य सूर्य मंदिर, एक महान रथ रूप में बना है, जिसके बारह जोड़ी सुसज्जित पहिए हैं, एवं सात घोड़ों द्वारा खींचा जाता है। यह मंदिर भारत के उत्कृष्ट स्मारक स्थलों में से एक है। यहां के स्थापत्य अनुपात दोषों से रहित एवं आयाम आश्चर्यचकित करने वाले हैं। यहां की स्थापत्यकला वैभव एवं मानवीय निष्ठा का सौहार्दपूर्ण संगम है। मंदिर की प्रत्येक इंच, अद्वितीय सुंदरता और शोभा की शिल्पाकृतियों से परिपूर्ण है। इसके विषय भी मोहक हैं, जो सहस्रों शिल्प आकृतियां भगवानों, देवताओं, गंधर्वों, मानवों, वाद्यकों, प्रेमी युगलों, दरबार की छवियों, शिकार एवं युद्ध के चित्रों से भरी हैं। इनके बीच बीच में पशु-पक्षियों (लगभग दो हज़ार हाथी, केवल मुख्य मंदिर के आधार की पट्टी पर भ्रमण करते हुए) और पौराणिक जीवों, के अलावा महीन और पेचीदा बेल बूटे तथा ज्यामितीय नमूने अलंकृत हैं। उड़िया शिल्पकला की हीरे जैसी उत्कृष्ट गुणवत्ता पूरे परिसर में अलग दिखाई देती है।

Konark Sun Temple
Konark Sun Temple

  यह मंदिर अपनी कामुक मुद्राओं वाली शिल्पाकृतियों के लिये भी प्रसिद्ध है। इस प्रकार की आकृतियां मुख्यतः द्वारमण्डप के द्वितीय स्तर पर मिलती हैं। इस आकृतियों का विषय स्पष्ट किंतु अत्यंत कोमलता एवं लय में संजो कर दिखाया गया है। जीवन का यही दृष्टिकोण, कोणार्क के अन्य सभी शिल्प निर्माणों में भी दिखाई देता है। हजारों मानव, पशु एवं दिव्य लोग इस जीवन रूपी मेले में कार्यरत हुए दिखाई देते हैं, जिसमें आकर्षक रूप से एक यथार्थवाद का संगम किया हुआ है। यह उड़ीसा की सर्वोत्तम कृति है। इसकी उत्कृष्ट शिल्प-कला, नक्काशी, एवं पशुओं तथा मानव आकृतियों का सटीक प्रदर्शन, इसे अन्य मंदिरों से कहीं बेहतर सिद्ध करता है।
  यह सूर्य मन्दिर भारतीय मन्दिरों की कलिंग शैली का है, जिसमें कोणीय अट्टालिका (मीनार रूपी) के ऊपर मण्डप की तरह छतरी ढकी होती है। आकृति में, यह मंदिर उड़ीसा के अन्य शिखर मंदिरों से खास भिन्न नहीं लगता है। २२९ फीट ऊंचा मुख्य गर्भगृह १२८ फीट ऊंची नाट्यशाला के साथ ही बना है। इसमें बाहर को निकली हुई अनेक आकृतियां हैं। मुख्य गर्भ में प्रधान देवता का वास था, किंतु वह अब ध्वस्त हो चुका है। नाट्यशाला अभी पूरी बची है। नट मंदिर एवं भोग मण्डप के कुछ ही भाग ध्वस्त हुए हैं। मंदिर का मुख्य प्रांगण ८५७ फीट X ५४० फीट का है। यह मंदिर पूर्व –पश्चिम दिशा में बना है। मंदिर प्राकृतिक हरियाली से घिरा हुआ है। इसमें कैज़ुएरिना एवं अन्य वृक्ष लगे हैं, जो कि रेतीली भूमि पर उग जाते हैं। यहां भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा बनवाया उद्यान है।

ध्वंस सम्बन्धी किंवदन्तियाँ


   यहाँ पर मन्दिर की ध्वस्तता के सम्पूर्ण कारणों का उल्लेख करना जटिल कार्य से कम नहीं है। परन्तु यह सर्वविदित है कि अब इसका काफी भाग ध्वस्त हो चुका है। जिसके मुख्य कारण वास्तु दोष भी कहा जाता है परन्तु मुस्लिम आक्रमणों की भूमिका अहम रही है।

 वास्तु दोष

   कहा जाता है कि यह मन्दिर अपने वास्तु दोषों के कारण मात्र ८०० वर्षों में क्षीण हो गया था। जिसे वास्तु कला व नियमों के विरुद्ध कहा-सुना जाता है। इसी कारणवश यह अपनी समयावधि से पहले ही ऋगवेदकाल एवम् पाषाण कला का अनुपम उदाहरण होते हुए भी धराशायी हो गया।

  कालापहाड़

   कोणार्क मंदिर के गिरने से सम्बन्धी एक अति महत्वपूर्ण सिद्धांत, कालापहाड से जुड़ा है। उड़ीसा के इतिहास के अनुसार कालापहाड़ ने सन १५०८ में यहां आक्रमण किया और कोणार्क मंदिर समेत उड़ीसा के कई हिन्दू मंदिर ध्वस्त कर दिये। पुरी के जगन्नाथ मंदिर के मदन पंजी बताते हैं, कि कैसे कालापहाड़ ने उड़ीसा पर हमला किया। कोणार्क मंदिर सहित उसने अधिकांश हिन्दू मंदिरों की प्रतिमाएं भी ध्वस्त करीं। हालांकि कोणार्क मंदिर की २०-२५ फीट मोटी दीवारों को तोड़ना असम्भव था, उसने किसी प्रकार से दधिनौति (मेहराब की शिला) को हिलाने का प्रयोजन कर लिया, जो कि इस मंदिर के गिरने का कारण बना। दधिनौति के हटने के कारण ही मन्दिर धीरे-धीरे गिरने लगा तथा छत से भारी पत्थर गिरने से, मूकशाला की छत भी ध्वस्त हो गयी। उसने यहाँ की अधिकांश मूर्तियां और कोणार्क के अन्य कई मंदिर भी ध्वस्त कर दिये।

छायाचित्रे / Images of Konark Sun Temple



Konark Sun Temple
Konark Sun Temple

Konark Sun Temple
Konark Sun Temple

Konark Sun Temple
Konark Sun Temple

Konark Sun Temple
Konark Sun Temple

मोढेरा सूर्य मंदिर / Modhera Sun Temple

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मोढेरा सूर्य मंदिर / Modhera Sun Temple

    मोढ़ेरा सूर्य मन्दिर भारत में गुजरात राज्य में अहमदाबाद से १०० किमी की दूरी पर मोढेरा नामक शहर में पुष्पावती नदी के तट पर स्थित है। यह भारतवर्ष के चुनिन्दा सूर्य मंदिरों में से एक है।

Modhera Sun Temple
Modhera Sun Temple

इतिहास / History of Modhera Sun Temple


  मंदिर में गर्भगृह के दीवार पर स्‍थापित एक शिलालेख के अनुसार इस मंदिर का निर्माण सम्राट भीमदेव सोलंकी प्रथम ने ईसा पूर्व १०२२ से १०६३ में करवाया था। सोलंकी सूर्यवंशी थे, और वे सूर्य को कुलदेवता के रूप में पूजते थे। इसलिए उन्होंने मोढ़ेरा के सूर्य मंदिर का निर्माण करवाया। यह वही समय था जब सोमनाथ जोतिर्लिंग और आसपास के क्षेत्रों पर विदेशी आक्रांता महमूद गजनवी ने अपने कब्जे में कर लिया था। गजनवी के आक्रमण के प्रभाव में आकर सोलंकीयों ने अपना वैभव और महिमा गंवाया था। सोलंकी साम्राज्य की महिमा, वैभव और गौरव को पुनः स्थापित करने के लिए सोलंकी राज परिवार और व्यापारी एकत्रित होकर भव्य मंदिर का निमार्ण किया। इस प्रकार मोढेरा के सूर्य मंदिर ने आकार लिया।

स्थापत्य


Modhera Sun Temple
Modhera Sun Temple


   इस मंदिर की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसके निर्माण में कहीं भी चूने का उपयोग नहीं किया गया है। हिंदु शैली में बने इस मंदिर के तीन हिस्से हैं, पहला गर्भगृह, दूसरा सभामंडप और तीसरा सूर्य कुण्ड। मंदिर के गर्भगृह के अंदर की लंबाई 51 फुट 9 इंच और चौड़ाई 25 फुट 8 इंच है। सभामंडप में कुल 52 स्तंभ हैं। इन स्तंभों पर बेहतरीन कारीगरी से विभिन्न देवी-देवताओं के चित्रों और रामायण तथा महाभारत की कथाओं को दर्शाया गया है। ये स्तंभ नीचे से देखने पर अष्टकोणाकार और ऊपर से देखने पर गोल दिखते हैं। मंदिर के निर्माण में ख्‍याल रखा गया है कि सुबह सूर्य की पहली किरण मंदिर के गर्भगृह को रोशन करे। सभामंडप के आगे एक विशाल कुंड सूर्यकुंड है जिसे रामकुंड भी कहते हैं। 

विदेशी आक्रमण


   अलाउद्दीन खिलजी के आक्रमणों से मंदिर को काफी नुकसान पहुंचा और कई मूर्तियां खंडित हो गई। फिल्‍हाल ये मंदिर भारतीय पुरातत्व विभाग के संरक्षण में है।

पौराणिक मान्यता 


   स्कंद पुराण और ब्रम्ह पुराण के अनुसार प्राचीन समय में मोढेरा क्षेत्र धर्मरन्य के नाम से विख्यात था। गुरु वसिष्ठ ने इस क्षेत्र के लिए श्री राम से कहा था कि यह धर्मरन्य स्थान आत्मा को शुद्धि देने वाला और ब्रम्ह हत्या के पाप से मुक्ति दिलाने वाला स्थान है। 

छायाचित्रे / Images of Modhera Sun Temple



Modhera Sun Temple
Modhera Sun Temple

Modhera Sun Temple
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Modhera Sun Temple
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